हमें भी इसी मुसाफिर की तरह दुनिया में रहना चाहिए



मैं कविताएं ज्यादा नहीं पढ़ता लेकिन महाकवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की यह कविता मैं बार-बार पढ़ता हूं। दिन में कम से कम दो बार।

इस कविता की आखिरी पंक्तियां आपके लिए पेश कर रहा हूं। ये वर्षों पहले मैंने डायरी में नोट की थीं, उसी रूप में आपके लिए प्रस्तुत हैं।

कविता का मूलभाव ये है कि एक घुड़सवार किसी जंगल से गुजरता है। जंगल का नजारा बहुत खूबसूरत है। वह बहुत घना जंगल है और बर्फबारी हो रही है।

उसका भी मन करता है कि कुछ देर इस खूबसूरती को देखे और यहीं रुक जाए। तभी उसे याद आता है कि उसका लक्ष्य आगे है, यहां रुकने का उसे इरादा नहीं करना चाहिए।

वह खुद से कहता है- बेशक यह जंगल बहुत खूबसूरत है लेकिन मेरे पास कई वायदे हैं जो मुझे पूरे करने हैं। मुझे सोने से पहले मीलों दूर जाना है। मुझे सोने (मौत) से पहले मीलों दूर जाना है।

हमें भी इसी मुसाफिर की तरह दुनिया में रहना चाहिए।

- राजीव शर्मा - 

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Comments

  1. Maashaa. Alllah Ap kamaal ke Imaandaar. Insaan. Hein

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  2. Meraa Malik. Yani. Paida karne wala. Un logo ki lambi umar kare jo insaano ko ladai jhhagde se bachate. Hein aur mere desh hindustaan ko tabahi se mehfooz rakhte hein. Mein. Un logo ko salaam karta hu. Chahe wo kisi bhi dharm ya jaati. Ke ho.

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