चर्च की प्रार्थना, महात्मा गांधी और वह सबक जो हम हिंदुस्तानी भूल गए




महात्मा गांधी तब दुनिया के लिए वकील मोहन दास हुआ करते थे। जब दक्षिण अफ्रीका गए तो महात्मा ने देखा, रंगभेद जोरों पर है। अगर किसी की चमड़ी का रंग काला हो तो गोरे उसके साथ जानवर से भी बुरा सलूक करते। खुद महात्मा गांधी रंगभेद के कारण ट्रेन से नीचे फेंक दिए गए। तभी उन्होंने तय कर लिया कि इस जुल्म के खिलाफ खड़ा होना है। 


रविवार का दिन था, गांधीजी किसी रास्ते से गुजर रहे थे कि वहां एक चर्च दिखा। रविवार था, अंदर प्रार्थना हो रही थी। उन्होंने सोचा, क्यों न प्रार्थना में शामिल हो जाऊं और उसके बाद पादरी साहब से मुलाकात करूं! उन्होंने अंदर दाखिल होना चाहा कि वहां खड़े पहरेदार ने रोक दिया। बोला, तुम काले हो, अंदर गोरे लोग प्रार्थना कर रहे हैं। तुम्हें जाने की इजाजत नहीं है। 



गांधीजी वहीं बैठ गए और पादरी साहब का इंतजार करने लगे। प्रार्थना पूरी होने के बाद पादरी साहब आए, गांधीजी से मिले। मालूम हुआ कि ये वही वकील मोहन दास हैं जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है और पहरेदार ने उन्हें इसलिए अंदर नहीं जाने दिया क्योंकि ये गोरे नहीं हैं।


पादरी साहब की आंखों में आंसू आ गए, बोले- आज मैं प्रार्थना सभा के बाद लोगों को बता रहा था कि हिंदुस्तान से एक पुण्य आत्मा यहां आई है जो रंगभेद के खिलाफ अहिंसक आंदोलन कर रही है। इस मुल्क की बदकिस्मती तो देखिए, आपके बारे में बातें हो रही थीं और आप ही को अंदर आने से रोक दिया। 



सबक

- मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा या कोई भी पूजन स्थल हो, सबके दरवाजे खोल दो। जाति, धर्म, रंग, राष्ट्रीयता या लिंगभेद के आधार पर किसी को मत रोको। खुदा/भगवान जितना आपका है, उतना ही दूसरों का भी है।  


- राजीव शर्मा - 

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Images- Pixabay


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